"COLLEGE :P "
ओस पर तेरा नाम लिखना याद हैं
देर रात तक तेरे मेसेज चेक करना याद हैं
डंडिया के घेरे में तुझे ढूँढना याद हैं
दूर हो तुम आज मुझसे काफी पर
तुझे भुलाने की कोशिश में हर रात नाकामयाब होना याद हैं
"दुआ"
बारिशों में धुल गयी जो मिट्टी वैसी किस्मत नहीं हो तेरी
पहली बूँद के गिरने पर जो आये खुशबु वैसी किस्मत हो तेरी।
"पोलियो"
दिवाली पर भाग वो फुलझड़ी न पकड़ सका
होली पर गुलाल लगाने वो गोपियों के पीछे दौड़ न सका
साहिल पर खड़ा हर आती लहर से वो डरता रहा
जाम टकराने में मशगूल तुम इतने रहे
के दो बूंदों की कमी से ज़िन्दगी का नशा वो खोता रहा
के दो बूंदों की कमी से ज़िन्दगी का नशा वो खोता रहा।
"जूनून"
सवेरा मेरा अंधेरो को निगल जायेगा
रवैय्या मेरा एक नया बिगुल बजाएगा
दिवाली हो या ईद हर त्यौहार का स्वागत दियों से किया जायेगा
दरारे तो खूब बनायीं भराव उनमे किया जायेगा
कोई भी देश परफेक्ट नहीं होता पर अब उसे परफेक्ट बनाया जायेगा।
"ऑटो वाला"
चले वो दिन रात न देखे
सूरज के बदलते मिजाज़ वो न देखे
मीटर करे डाउन और चल पड़े वो
थके जब तो पीछे गद्दी पर सो जाये वो
घर को कहता कोठी और गाड़ी को अपनी रानी
72 साल का था वो बूढ़ा,
पर दिल में भरी थी जवानी
पर दिल में भरी थी जवानी।
"दिल से ड्रामा"
हल्ला हैं हंगामा हैं दिल बहलाने का यह बहाना हैं
तीन साल पहले शुरू हुआ अंजाना हमारा यह कारवां हैं
काम करते करते थक गए थे हम तो जोश भरने के लिए ये कदम हमारा हैं
दिलीप यहाँ शाहरुख़ यहाँ हमारे पास ही मधुबाला हैं
पता नहीं क्या बात हैं हम सब में पर एक बात साफ़ हैं
हम सब ही नहीं हमारा दिल भी दिल से ड्रामा हैं.
"जाड़ा"
कही बर्फ का बदल कही ठंडी हवा लाता हैंहर कम्बल रजाई को करवट लेना सिखाता हैं
मफलर की वरमाला कुंवारों के गले मैं भी दाल जाता हैं
शाम ढले तो coffee को prime minister बनाता हैं
रात ढले तो शहर को कोहरे की चादर में लपेट सोती हुई दिल्ली को निहारता हैं
पसीने की नदियों से छुटकारा ये दिलाता हैं
भीनी से मुस्कान ये हर चेहरे पर मड जाता हैं
इतना सब कुछ ये चंद दिनों मैं कर जाता हैं
यही खुशियों का मौसम तो जाड़ा कहलाता हैं.
"हक"
चेहरे की रौनक को कम न होने दे
भिगोये सागर अगर डुबकी मार उसमे और उसे जवाब दे
पाँव की जंजीर को तू घुंघरू की शक्ल दे
पानी भी दाल देता हैं पत्थर पर निशान
तू तो फिर भी लोहे का पुतला हैं मेरी जान
डर को तकिये के नीचे रख और भूल जा
निराशा को कुल्ले के साथ बाथरूम में थूक जा
कांटो पर हरदम ज़िन्दगी नहीं रहती
गुलाबी सुबह तेरे पड़ोस में हैं रहती
खित खिता दरवाज़ा मांग अपना हक़
इस एक को अब तू न खोने दे
इस एक को अब तू न खोने दे.
"सिपाही"
अजब दुनिया हैं इक सिपाही की भी
बीवी बच्चे छोड़ माँ की ज्यादा परवाह करता हैं
गद्दे का आराम रास नहीं आता मिट्टी में लेटने की आदत जो पद गयी हैं
ईमेल के ज़माने मैं कलम उठाता हैं और खुद ठिठुरते हुए लिखता हैं
"घर पर हीटर खरीद लेना"
चुना चाहता हैं अपनों को वो हर पल
पर छु न पाए हमको कोई इसिलए याद पीता हैं सिपाही
बड़ी अजब ज़िन्दगी जीता हैं सिपाही
बड़ी अजब ज़िन्दगी जीता हैं सिपाही