उतर कर सवारी से पहले कदम बढ़ाये ही थे हमने के दिल जोर से धड़कने लगा
राजधानी में कोई राजा जैसा न दिखा
हर जगह बस गरीब का पसीना ज़मीन पर टपकता दिखा
भेड़ देख पागल हो जाते हैं जैसे सियार
वैसा ही था हर ऑटो वाले के चेहरे का भाव
दस रूपये ज्यादा दे दोगे तो ताज महल नहीं बना लूँगा
ये कहकर ऑटोवाला मुझे मेरी मंजिल पर ले चला
बहार निकले तो रंगत ही बदल गयी
गलियां देखी हो पूरी ज़िन्दगी जिसने चौड़ी सड़के देख हैरत उसे थोड़ी आई
इधर मुड़ो तो अज़ान की महक उधर मुड़ो तो गीता का पाठ
Cultural Diversity उस दिन समझ में आई
बीडी जलाकर ऑटोवाले ने पुछा कहा से आये हो?
सहमे मैंने बोला ग्वालियर से
सिंधिया घराने से होगे : पहली हसी दिल्ली की इस तरह मेरे खिदमत पेश आई
ऑटो से बहार निकले थे हम सर
सौंधी हवा मुझसे कहने लगी
दिल ही हैं यह शहर दिल्ली न कहना
कुंदन हीरे से कम नहीं है यह गहना
अच्छे रहो इसके साथ तो खूब प्यार देती है
पर उखाड़ने की भूल न करना
तुम तो क्या ही हो पूरी की पूरी सरकार ही निगल लेती है
घर पहुचे बैग फेका और बिस्तर पर पद गए
40 मिनट मई ये शहर 40 मर्तबा बदल गया
क्या यहाँ के लोग भी ऐसे ही होंगे
सवाल दिल को खाए जा रहा था
पर शाम ढली तो जवाब आया
दिल्ली बोली मुझसे
चिंता मत कर जैसे भी हैं मेरे हैं
दोगुले हैं मक्कार हैं पर सारे नहीं हैं
उस पल एहसास हुआ यह दिल्ली नहीं दिल ही है :)
राजधानी में कोई राजा जैसा न दिखा
हर जगह बस गरीब का पसीना ज़मीन पर टपकता दिखा
भेड़ देख पागल हो जाते हैं जैसे सियार
वैसा ही था हर ऑटो वाले के चेहरे का भाव
दस रूपये ज्यादा दे दोगे तो ताज महल नहीं बना लूँगा
ये कहकर ऑटोवाला मुझे मेरी मंजिल पर ले चला
बहार निकले तो रंगत ही बदल गयी
गलियां देखी हो पूरी ज़िन्दगी जिसने चौड़ी सड़के देख हैरत उसे थोड़ी आई
इधर मुड़ो तो अज़ान की महक उधर मुड़ो तो गीता का पाठ
Cultural Diversity उस दिन समझ में आई
बीडी जलाकर ऑटोवाले ने पुछा कहा से आये हो?
सहमे मैंने बोला ग्वालियर से
सिंधिया घराने से होगे : पहली हसी दिल्ली की इस तरह मेरे खिदमत पेश आई
ऑटो से बहार निकले थे हम सर
सौंधी हवा मुझसे कहने लगी
दिल ही हैं यह शहर दिल्ली न कहना
कुंदन हीरे से कम नहीं है यह गहना
अच्छे रहो इसके साथ तो खूब प्यार देती है
पर उखाड़ने की भूल न करना
तुम तो क्या ही हो पूरी की पूरी सरकार ही निगल लेती है
घर पहुचे बैग फेका और बिस्तर पर पद गए
40 मिनट मई ये शहर 40 मर्तबा बदल गया
क्या यहाँ के लोग भी ऐसे ही होंगे
सवाल दिल को खाए जा रहा था
पर शाम ढली तो जवाब आया
दिल्ली बोली मुझसे
चिंता मत कर जैसे भी हैं मेरे हैं
दोगुले हैं मक्कार हैं पर सारे नहीं हैं
उस पल एहसास हुआ यह दिल्ली नहीं दिल ही है :)
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